बेटियाँ
क्यों मारते हो कोख में नादान बेटियाँ
इंसान को है रब का ये वरदान बेटियाँ।
बनता न घर समाज यदि होती न बेटियाँ
होती हैं ख़ानदान की पहचान बेटियाँ।
बेटे बढा़यें नाम तो इक ख़ानदान का
दोनों कुलों की हैं बढा़ती शान बेटियाँ।
हैं कल्पना,किरण अौर सुनीता ये अमृता
पत्तों पे ठहरी ओस-सी आसान बेटियाँ।
चुनकर ये शूल पथ में बिछाती प्रसून ही
माता-पिता की आबरू-अरमान बेटियाँ।
सच मानिये ये बेटियां गीता-कुरान सी
अपने वजूद से रहीं अन्जान बेटीयाँ।
This is a competition entry: "बेटियाँ" - काव्य प्रतियोगिता
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Bharti Jain
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