
Feb 23, 2021 · कविता
बागों की सैर
आज दिल
बागों की सैर ही क्यों
करे जा रहा है
नहीं चाहता कि
आज शाम हो और
सूरज ढले
वह जी भर टहलने के बाद
चहल कदमी करने के बाद
दोस्तों से कुछ दिल की बातें
गुफ्तगू करने के बाद
घर लौटकर भी न जाये
यहीं रह जाये
फूलों के डेरों में ही
रोज उसका सवेरा हो
यही चाहत आज वह दिल में
लिए
न जाने
भंवरे सा बावरा
डाली डाली
क्यारी क्यारी
फूलों पर
कलियों पर
एक काली घटा की
भटकन सा
लहरा रहा है
मंडरा रहा है
बहक रहा है
बिन पिए
एक नशे सा
नशेमन को
एक चिड़िया सा
चहका रहा है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001


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