
Mar 30, 2020 · दोहे
प्रेम
पर्वत है ऊँचा मगर, छूँ न सका आकाश।
प्रेम हृदय में है नहीं, कैसे करें विकास।।१
पुष्प प्रेम खुश्बू भरा, लुटा रही स्वच्छंद।
रस का लोभी ये भ्रमर, छीन लिया मकरंद।।२
अहं भाव जिसमें भरा,नहीं निभाता संग।
छोटी-छोटी बात पर, दिखता असली रंग।।३
पुष्प प्रेम करती बहुत,खुश्बू करती दान।
सह कर सारे दंश को, रखती है मुस्कान।।४
जिसके दिल में है खिला, सत्य प्रेम का फूल।
दुख उसको होता नहीं, चुभे हजारों शूल।।५
अब जग में प्रेमी नहीं, करें प्राण का दान।
स्वार्थ लिप्त प्रेमी बनें,ले लेते हैं जान।।६
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

MA B Ed (sanskrit) My published book is 'ehsason ka samundar' from 24by7 and is...

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