प्रेम और प्यार
सदियों से प्रेम और प्यार की कहानी सभी लोग सुनते आ रहे हैं,प्रेम और प्यार एक ही सिक्का के दो पहलू हैं,प्रेम और प्यार एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं,फिर भी प्रेम और प्यार में अंतर देखा जाए,तो दोनों में लगभग लगभग जमीन आसमान का अंतर नजर आता है
प्यार एक स्वार्थ का प्रतीक है,तो वहीं प्रेम,बलिदान,त्याग,निष्ठा,समर्पण का शौर्य स्तंभ है,प्रेम और प्यार का मंजर प्रकृति से लेकर पशु पक्षी,वनस्पतियों पुष्पों में भी देखने को मिलता है,प्रेम एक ऐसी लाठी है,जो हर एक किसी को चलने का सहारा बन जाया करता है,प्रेम जीवन में मंजिल की प्रथम सीढ़ी होती है,प्यार के अंतः करण सागर की गहराई में डूबने से कोई नहीं बचा है,चाहे वह ब्रह्मऋषि,देव,दानव,किन्नर,यक्ष,गन्धर्व,या भगवान तो साधारण मनुष्य का क्या है
प्यार स्वार्थ से परिपूर्ण है,चाहे वह किसी से हो,प्रेमी-प्रेमिका हो,फूल और माली हो,किसान और खेती हो,भाई-भाई हो,पुत्र पिता हो,चाहे वो रिश्ता नाता हो,प्यार स्वार्थ का प्रतीक है,जब तलक भाई-भाई में प्यार रहता है,वह पूर्ण परिवार में भी कभी अलग नहीं होना चाहते हैं,प्यार मर सकता है,अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर सकता है,जब भाई-भाई में मनमुटाव द्वेषता हीनता बढ़ती है,तो प्यार का उल्लंघन करके एक दूसरे से अलग तक हो जाते हैं,प्यार है तो बातें भी करते हैं,अगर भरत जैसा भाई हो,तो वह अपने भाई से प्यार नहीं प्रेम करते,जो भाई अपने भाई से सच्चा प्रेम करते हैं,तो घर में अगर अलग होने की बात उठे तो,एक भाई अपने दूसरे भाई को पूर्ण संपत्ति दान दे देंगे,लेकिन कुनबा वास आंगन में दो टूक कभी भी नहीं करेंगे
फूल और माली का प्यार विश्वास पर टिका हुआ है,किसान का स्वार्थ खेत में अनाज से है,पिता पुत्र माता का स्वार्थ,प्यार,प्रेम,कर्तव्य तीनों के बंधन से बंधा होता है,जो समय की मांग के अनुसार प्रेम प्यार पथ का चयन करते हैं
प्रेमी प्रेमिका के प्यार और प्रेम पर आते हुए प्रेम और प्यार में अंतर देखते हैं
प्यार करने वाले प्रेमी प्रेमिका कभी भी एक दूसरे से अलग नहीं होना चाहेंगे,चाहे कुछ भी हो,इसमें पहले भी कह चुका हूं,कि प्यार सीमाओं का उल्लंघन करने से नहीं चूकता है,उसको लाभ,हानि,जन-कल्याण,समाज,रिश्तो से,पूर्वजों के आदर्शों से आचरण की सभ्यता से,किसी से कुछ लेना देना नहीं रहता है,बस कुछ है,तो वह अपने प्रेमी संबंध को अपने से दूर नहीं होने देना चाहते हैं,अपने दायित्वों से दूर भागने में अपनी सफलता,पर गर्व और अपना सम्पूर्ण कल्याण समझते हैं
प्यार तो व्यक्ति एक जानवर से भी करता है,लेकिन समय के साथ उसे छोड़ देता है,उसका सौदा कर देता है,आजकल के 98% प्रेमी-प्रेमिका प्यार के सौदागर बन समाज में प्यार और प्रेम जैसे पवित्रता को कलंकित करते हैं,जो इस युग में एक अभिशाप है,हमारे समाज में फिर भी आज इनका ही साथ देते है,ऐसे ही अधर्मियों के साथ खड़ा होते है,सत्य कड़वा होता है,संयोग से कोई प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से रिश्तो के बंधन बन जाते हैं,समाज से परिवार से पूर्वजों की आन-बान,शान,प्रतिष्ठा,यश,पुण्य,देव तुल्य,आत्मा को ठेस पहुंचाते हैं,तो क्या वह सुखी रहते हैं,लगभग 0.01% सुखी हो,प्यार करके,प्यार यही कहता है,रिश्ता में बंधने के बाद यह कहता है,कि किसी भी विषम परिस्थितियों में एक साथ रहेंगे,एक दूसरे से अलग या झगड़ा नहीं करेंगे,शादी से पहले बड़े-बड़े वादे होते हैं,कि हम जीवन जमीन पर सोकर भी जिंदगी बीता देंगे,नमक रोटी खाकर ही जीवन यापन करेंगे,आपसे कुछ नहीं मांगेंगे,शादी के बाद कभी घर के सामग्री के लिए,कच-कच तो कभी जेवर के लिए हंगामा होता है,ऐसा प्यार तो जीवन में अभिशाप है
कभी कभी यही प्रेमी जोड़े अनेक प्रकार से आत्म-हत्या कर लेते हैं,लेकिन प्यार के दूसरे पहलू प्रेम से अनभिज्ञ होते हुए,अपनी जीवन लीला का अंत करके,अपने साथ अपने परिवार माता-पिता रिश्ता नाता,समाज,पूर्वजों के आन,बान,शान प्रतिष्ठा,यश,गुण पर भी कलंक का टीका लगा देते हैं,जमीन आसमान का प्रेम भी कितना अनोखा है,कि ना मिलते हुए भी जमीन की प्यास को बुझाने के लिए आसमान रो पड़ता है,पुष्प का पौधा माली के स्वार्थ के लिए अपने पुष्प का त्याग अपने सुगंध के साथ करता है
प्रेम बलिदान,त्याग,समर्पण का शौर्य स्तंभ है,जो समाज में सदैव के लिए अमर हो जाता है,जो एक अद्भुत उदाहरण स्रोत बन जाता है,जो हर एक मनुष्य में नई जिंदगी जीने का सुनहरा मौका प्रदान करता है
प्रेम कभी भी अपने सीमाओं का उल्लंघन नहीं करता है,अपने स्वार्थ के लिए नहीं,अपितु दूसरे के लिए,जन-कल्याण,समाज,पूर्वजों के प्रतिष्ठा,सम्मान के लिए,प्रेम अपने स्वार्थ का बलिदान कर देता है,अपना सर्वत्र समर्पित कर देता है,समर्पण ही उसका सर्व प्रथम धर्म होता है,समर्पण ही प्रेम का सबसे अचूक मंत्र है,कहा है,किसी ने सच्चा प्रेम किसी को नहीं मिलता है,चाहे कोई भी हो
जब भगवान श्रीकृष्ण को सच्चा प्रेम ना मिला,तो किसी और का क्या कहना,सच्चा प्रेम मानव स्मृतियों में सदैव साथ होता है,सच्चे प्रेमी प्रेमिका सदैव दोनों एक होते हैं,जब एक होते हैं,तो दोबारा मिलन की बात नहीं होती,क्योंकि किसी भी एक नदी का,दूसरे नदी से संगम एक बार ही होता है,तो प्रेम का संगम दो बार कैसे हो सकता है,एक बार प्रेम का संगम हो गया तो,आजीवन एक ही स्वरूप में चिरकाल तक रह कर अमर हो जाता है
प्रेम वह सन्यासी है,जो आत्मा से परमात्मा से मिलन में स्वास्तिक साधना कराता है,जो हमेशा एक दूसरे के लिए शुभ फल प्रदान करता है
सच्चा प्रेमी प्रेमिका वही है,जो अपने परिवार के मान सम्मान,पूर्वजों के गरिमा मय प्रतिष्ठा का लाज रख,रिश्तों मर्यादा का अनादर न करें,जो एक दूसरे को प्राणों से प्रिय होने के बाद भी,अपने कृतज्ञ भाव,कर्तव्य,धर्म ही चयन करते हुए,अपना प्रेम अपने मृदुल हृदय में सदैव धारण कर,प्रेम जैसे शब्द से प्रफुल्लित,सकुशल,आनंदित रहते हुए,प्रेमी प्रेमका एक दूसरे का परित्याग करने से ना चुके,वही सच्चा प्रेमी प्रेमिका होता है
जिसका साक्ष्य,यह अंबर,पवन,वसुंधरा,अग्नि,जल,यक्ष,प्रकृति,आकाश के देवगढ़,नाग,गन्धर्व,इस प्रेम का साक्षात्कार प्रमाण बनते हैं,चिरकाल तक यह प्रेम कथा अमर हो जाता है
प्रेम प्यार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,जो एक दूसरे के पूरक हैं,स्नेह इनका जोड़ संगम है,स्नेह से प्रेम की उत्पत्ति होता है,जो निस्वार्थ प्रेम करता है,वही समर्पण त्याग का अनुदाई होता है
[“प्यार में स्वार्थ रहता है,प्यार व्यक्ति या नारी अपने से सुंदर वस्तु के लिए करता है,प्यार में उन्माद,हंसी,वासना सब लिप्त रहता है,व्यक्ति के अंदर चाहत रहती है,किसी तरह उसको पाना चाहता है,झूठे कसमे देकर उसको पाने की ललक रहती हैं,प्यार में पाप रहता है,प्यार स्वार्थ से पूर्ण है
प्रेम किसी से निस्वार्थ होता है,प्रेम में पूजा-अर्चना होती है,किसी को जो देखे उससे प्रेम होता है,भगवान को कौन देखा है मगर भगवान के भक्त उनसे प्रेम करते हैं,प्रेम पाक है,प्रेम स्वच्छ मन से होता है,प्रेम अपार स्वच्छ मन द्वारा ग्रहण किया जाता है,एक मां अपने बच्चे से प्रेम करती है,एक गाय अपने बछड़े से प्रेम करती है,एक बच्चा अपनी मां बाप को प्रेम करता है,प्रेम निर्मल स्वच्छ जल गंगा मां के समान पवित्र शब्द है”(स्वर्गीय प्रवीण कुमार पांडेय जी,अधिवक्ता उच्च न्यायालय द्वारा )”]
प्रेम संसार में पूजनीय है,प्रेम से मानव सभी संसार मय हृदय में निवास स्थान प्राप्त कर लेता है,जहां निस्वार्थ प्रेम होता है,वही सुख समृद्धि आनंद प्राप्त होता है,प्रेम मोक्ष द्वार होता है,लोभ,घृणा,तृष्णा,का संघारक भी प्रेम है,जहां निस्वार्थ प्रेम निवास करता है,वहां तृष्णा,घृणा,द्वेष, मलीनता,कपट,निवास स्थान बना ही नहीं पाते हैं,संपूर्ण ब्रह्मांड में प्रेम सर्वोपरि है,जो त्याग समर्पण मन में रखता है,वही प्रेम का पुजारी होता है,जो प्रेम का पुजारी है,उसके पुजारी स्वयं त्रिलोकीनाथ शंभू,नारायण,ब्रह्मा,देव,मुनि,नाग,गन्धर्व भी उन्हें पूजते है
प्रेम प्यार से कई गुना बड़ा है,प्यार तो एक कण है,प्रेम तो संपूर्ण ब्रह्मांड है,प्यार की परिभाषा तो सभी देते फिरते हैं,सच्चे प्रेम का परिभाषा तपस्वी त्यागी ही जानता है….!
धन्यवाद…!
राइटर:- इंजी.नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)

