पीड़ा का साम्राज्य
प्रकृत का विश्लेषण देख के, मैं जानता से कहता हूं
भूकम्प भूस्खलन सी आपदा, अपने ऊपर सहता हूं
सर्दी बारिश गर्मी जाड़ा का, विसाद हृदय में रखता हूं
पीड़ा का साम्राज्य सजा कर, झर झर झरना सा बहता हूं
ईष्या द्वेष लोभ सदा, आत्म बोद्ध में माया देता है
हरे भरे शब्दों के बादल, शीलत छाया देता है
दृढ़ मानव सा अपना दृगंब, छिपा अम्बक में रखता हूं
पीड़ा का साम्राज्य सजा कर, झर झर झरना सा बहता हूं
चट्टानों से बुर्ज हमारे, धूल धूल से दिखते है
अवशेषों के पड़े हमारे, टुकड़े टुकड़े मिलते है
जटिल जुझारू परिवर्तन में, अडिग खड़ा मैं रहता हूं
पीड़ा का साम्राज्य सजा कर, झर झर झरना सा बहता हूं
आत्म विचारों के मंथन में, विवश्ता सा पड़ा हुआ
विपदा के इन तूफानों से, लड़ जाने को खड़ा हुआ
जननी से जो किया है वादा, उसे निभाना चाहता हूं
पीड़ा का साम्राज्य सजा कर, झर झर झरना सा बहता हूं
वास भूमि के कण कण को वह, श्रमसीकर से सीचा था
सम्बन्धों के प्रारब्धों में, हार कर भी वह जीता था
भाई तेरे ऋण मुक्ति को, आशीष बनाना चाहता हूं
पीड़ा का साम्राज्य सजा कर, झर झर झरना सा बहता हूं
कर्तव्य परायण निष्ठा का दे देना, वरदान मुझे
ओक शिला के शिलान्यास में, हो जाना कुर्बान मुझे
हेमलता के फुलवारी को, पुनः खिलाना चाहता हूं
पीड़ा का साम्राज्य सजा कर, झर झर झरना सा बहता हूं
इंजी. नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)

