May 17, 2020 · कविता
पति की व्यथा (हास्य व्यंग)
दिन भर हमसे काम कराए, घर का झाड़ू पोछा,
उसके बाद किचन में बनवाए इडली डोसा,
जब भी मैं मोबाइल देखूं मारे हमको हूसा,
बोलती है तुम अब रहे ना किसी काम के,
जय हो सीता के, जय हो प्रभु राम के।
जब भी मेरी सैलरी आए मांगे हमसे खर्चा,
अपनी सैलरी का कभी करती नहीं है चर्चा,
बोलती है जाओ सब्जी ले आओ शाम की,
जय हो सीता की, जय हो प्रभु राम की।
करती है पर प्यार बहुत, करती हमारी पूजा
रखती है ये ध्यान बहुत नहीं रखता कोई दूजा,
हर दम मेरे पांव दबाए जब भी काम से लौटा,
सिरहाने बैठ सर सहलाए जब भी मैं हूं सोता,
कहती है मैं धन्य हुई हूं पाकर के तुमको,
नहीं जरूरत है हमको किसी चार धाम की,
जय हो सीता की जय हो प्रभु राम की।
जय हो सीता की जय हो प्रभु राम की।
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बदनाम बनारसी
Banaras
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अपने माता पिता के अरमानों की छवि हूँ मैं, अँधेरों को चीर कर आगे बढ़ने...

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