
Feb 23, 2021 · कविता
पंचचामर छंद
पंचचामर छंद ✔️
शिल्प~ [रगण जगण रगण जगण रगण](गुरुलघु ×7
“सरस्वती वंदना”
नमो सरस्वती करूं प्रणम्य मातु भारती।
करूँ उपासना चढ़ा प्रसून शुभ्र आरती।।
कृपानिधान वत्सला प्रसीद ज्ञान दायिनी।
अज्ञानमर्दिनी नमो प्रसीद हंसवाहिनी।।
सुज्ञान दे सदा यही विशुद्ध लेखनी रहे।
उमंग की प्रतीक हो सुरम्य रागिनी रहे।।
अमूल्य दो असीस हैं अबोध पुत्र आपके।
निखार दो चरित्र हों समीप भी न पाप के।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©
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भारत संचार निगम लिमिटेड से रिटायर्ड ओ एस। वर्तमान में अजमेर में निवास। प्रारंभ से...

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