नन्हा बालक
सोच रहा है बैठा बैठा
क्या क्या सपने गढ़ता है।
बगिया में इक नन्हा बालक
खुद से बातें करता है।
उड़ता जाऊँ नील गगन में
सुंदर से पर पाऊँ मैं।
चिड़ियों सा चहकूँ गलियों में
चुन चुन मीत बनाऊँ मैं।
फिर कहता है फूल बनूँ या
भँवरा बन मड़राऊँ मैं।
पेड़ बनूँ मैं बरगद जैसा
फल बन भूख मिटाऊँ मैं।
फिर बोला या जुगनूँ बनकर
रोशन कर दूँ घर घर को।
या बन जाऊँ चाँद सितारे
शीतल कर दूँ दर दर को।
या सूरज बन कर निकलूँ मैं
दुनियाँ की उम्मीद बनूँ ।
या बरसूँ मैं बरखा बनकर
दीवाली या ईद बनूँ।
या फिर सागर बन लहरों से
सुर सरगम संगीत रचूँ।
या फिर शब्द बनूँ मोती से
गढ़ माला कुछ गीत रचूँ।
सोच रहा है बैठा बैठा
खूब उड़ाने भरता है।
बगिया में इक नन्हा बालक
खुद से बातें करता है।
© डॉ० प्रतिभा माही
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