Dec 15, 2016 · दोहे
दांत किटकिटाते दोहे
निकल आये संदूक से स्वेटर, मफलर, टोप।
ठंड भी ज़िद पे अड़ी, रोक सके तो रोक।।
सुबह सुनहरी धूप में, अदरक की हो चाय।
भजिया मैथी भाजी के, शाम ढले हो जाय।।
सर्द हवाएं चल रहीं, बिस्तर बड़ा सुहाय।
ऑफिस ना जाना पड़े, ऐसा कुछ हो जाय।।
ठंड कंपाये हड्डियां, बदन अकड़ सा जाय।
रगड़ हथेली जोर से, कुछ गरमी आ जाय।।
अलसाया सूरज उगा, सुस्त सुस्त सा आज।
बादल उसको छेड़ते, अगल बगल से आज।।
काँप गया एक बारगी मौसम भी प्रतिकूल।
छोटे बच्चे चल पड़े, ठिठुरन में स्कूल।।
घर में दुबके हैं सभी, सूनी हैं चौपाल।
गरीब के भी तन ढंकें, दया करो गोपाल।।
मैथी के लड्डू बने, तिल के बने गणेश।
गुड़पट्टी ऐसी लुटी, बचे नहीं अवशेष।।
कोहरा बदमाशी करे, धुंध को लेकर साथ।
दिनभर सबके बीच में, हाथ न सूझे हाथ।।
– अखिलेश सोनी


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