तुझसे दूरियाँ सोचकर डर जाता हूँ मैं
तुझसे दूरियाँ, सोचकर डर जाता हूँ मैं
तुझे दर्द, तो सिहर जाता हूँ मैं
काश तुझे खुद में छुपा लेता
तेरी मुस्कुराहटों से निखर जाता हूँ मैं
ख्वाबों में तेरी ओर चलता हूँ
तू मिलती है तो ठहर जाता हूँ मैं
ये नजरें तुझे ढूढ़ने लगतीं हैं
जब- जब तेरे शहर जाता हूँ मैं
हाथों में तेरे नाम की लकीरें नहीं शायद
सोचता जो, बिखर जाता हूँ मैं |

Kailash singh
सतना ( म. प्र.)
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शायर, कवि ( 9109633450), एजुकेशन- BE ( Bachelor of Engineering) , Mechanical Branch

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