" तन हुआ बंसुरिया " !!
प्रियतम का स्पर्श पा ,
मानो धन्य हुई |
छुअन की अनुभूति में ,
डूबी-मगन हुई |
चमक गई मन के अंधियारे –
ज्यों बिजुरिया ||
अधरों की छुअन मीठी ,
धडकनों में द्वन्द |
रोम रोम व्याप्त मौन ,
पलकें हुई बंद |
बदरी सी बरसी खुशियाँ –
अपनी डगरिया ||
सब टूट गये तटबंध यों ,
बहका सरित प्रवाह |
सागर से मिलने की ,
बढ़ती गयी चाह |
खो जाऊं अस्तित्व अपना –
उठती लहरिया ||
हैं जगे सुर मदिर ऐसे ,
हो गयी निहाल |
तन मन ने सुध खो दी,
लज्जावनत ,बेहाल |
सब कसे हुए बंध ढीले –
कमसिन उमरिया ||
बृज व्यास
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