झलक दिखा के न यूँ बेकरार कर मुझको
फ़िज़ा बहार की है तो बहार कर मुझको
झलक दिखा के न यूँ बेकरार कर मुझको
खुली किताब के जैसी है ज़िंदगी मेरी
कभी तो देखिए चश्मा उतार कर मुझको
खुमार रखना मुहब्बत का चाहे नफरत का
जो दिल करे तेरा वो बेशुमार कर मुझको
मैं खुशनसीब हूँ जो मर गया मुहब्बत में
वो बदनसीब रहेगा यूँ मार कर मुझको
तकाज़ा इतना कि सैय्याद भी पिघल जाए
शिकार कह रहा खुद ही शिकार कर मुझको
तुझे न पाया तो हासिल भी क्या हुआ ‘सागर’
गले लगा ले या फिर खाकसार कर मुझको

SAGAR
92 Posts · 1.4k Views

You may also like: