जीत कर भी फिर से हारी जिंदगी
जीत कर भी फिर से हारी ज़िंदगी
पूछिए मत क्यूँ गुजारी ज़िंदगी
इक महाजन सबके ऊपर है खड़ा
जिसने हमको दी उधारी ज़िंदगी
चूना-कत्था लग रहा है आये दिन
पान बीड़ी और सुपारी ज़िंदगी
इक तरफ महमूद सा अंदाज़ है
इक तरफ मीना कुमारी ज़िंदगी
हो गई है इस ‘हनी’ से बोर जब
फिर तो बस ‘राहत’ पुकारी ज़िंदगी
चैन की फिर नींद आई क़ब्र में
अपने तन से जब उतारी ज़िंदगी
नज़ीर नज़र

Nazir Nazar
26 Posts · 415 Views

You may also like: