
जिम्मेदारी
थक गया हूं, जिम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते,आखिर मेरी भी तो कुछ इक्छायें हैं।
संतोष ने झल्लाकर अपनी माँ से कहा…
पिताजी के गुजर जाने के बाद एक वही तो था, घर में बड़ा जिसको अपनी दो छोटी बहन और मां की देखभाल करनी थी।
मां कुछ चाहते हुए भी बोल नहीं पाई, मां को भी अहसास था संतोष के परिश्रम का।
आखिर संतोष ने खुद ही अपनी इच्छाओं को ताक में रखकर ये जिम्मेदारी उठायी थी।
दूसरे ही पल संतोष अपने अजीब बर्ताव पर मां से शर्मिंदा होने लगा, दोनों ही अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए, और फूट-फूट कर रोने लगे।
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