--जवानी की पारी--शिखरिणी छंद
शिखरिणी छंद की परिभाषा और कविता
शिखरिणी छंद
——————यह एक वर्णिक छंद हैं।चार चरणों के इस छंद के प्रत्येक चरण में सत्रह-सत्रह अक्षर होते हैं।इसके हर चरण में यगण,मगण, नगण,सगण,भगण लघु और गुरू होता है।इसके प्रत्येक चरण में यति छह और ग्यारह वर्णों पर होती है।
यगण=ISS
मगण=SSS
नगण=III
सगण=IIS
भगण=SII
लघु=I
गुरू=S
शिखरिणी छंद की कविता
“जवानी की पारी”
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हमारी तुम्हारी,नज़र मिलेगी यार जब भी।
खिलेंगी आशाएँ,ठहर हँसेगी रात रब भी।।
नज़ारे उन्मादी,पहर ढ़लेंगे शाद तब भी।
सजेंगी राहें ये,हरपल देंगे दाद लब भी।।
घटाएँ काली हो,नमन करेंगी बारिश बन री।
फिज़ाएँ ताली दें,गमन करेंगी हर्षित बन री।।
हमारे साथी ये,चमन खिलेंगे मोहित बन री।
बलाएँ हारेंगी,अमन मिलेगा शोभित बन री।।
खुमारी प्यारी सी,अधर पिये जाते अधर से।
गले डाले बाहें,अमर बनाते स्पर्श भर से।।
निगाहें बाली-सी,मिलकर ताज़ा रंग कर से।
अदाएँ जोशीली,सिहरन लाती रोम स्वर से।।
नशा उन्मादी हो,रग-रग में तूफ़ान भरता।
तभी प्यासे हारे,तन-मन को बाहों जकरता।।
उषा-सी लाली वो,छुवन मिली सी मादक जता।
हसीं आहें बाहें, तपन बुझाती प्यार जगता।।
हमारा तुम्हारा,मिलन सदा ताज़ा बन रहे।
हमारी तुम्हारी,छुवन सदा ताज़ा बन रहे।।
फले फूलें प्रेमी,लगन अदा सारे फ़न रहे।
जवानी की पारी,मदन-रती ज़्यादा बन रहे।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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