
चलना होगा अकेले
न रथ है
न कोई पथ है
रथ-पथ विहीन
दौड़ा चला जा रहा है
अश्वमेध यज्ञ के तुरंग-सा
अदृश्य निर्जीव एक विषाणु
और विस्तारित हो रहा है रक्तबीज-सा
समूचा विश्व असहाय निरुपाय हो देख रहा है
मिल जाए कोई राहत इस वैश्विक दानव से
सब अनवरत लगे हैं उपाय खोजने में
कैसे अंत हो इस दानव का
विश्वस्त हैं उपाय मिलेगा
किन्तु इससे पूर्व
हमें चलना है
अकेले ही
पथ पर
अशोक सोनी ।
2 Comments · 10 Views

पढ़ने-लिखने में रुचि है स्तरीय पढ़ना और लिखना अच्छा लगता है साहित्य सृजन हमारे अंतर्मन...

You may also like: