Mar 29, 2020 · मुक्तक
चंद अल्फ़ाज़
कुछ सोचकर लफ्ज़े इज़हार जज़्ब कर लेता हूं के उन्हे ब़दग़ुमानी का ए़हस़ास ना हो जाए ।
मैं समझता था कि वो पत्थर दिल़ हैं पर मेरे सोज़े इश़्क ने उन्हें मोम़ सा पिघ़ला दिया ।
ये दौलत ,ज़मीन, ज़ायदाद सब यहीं रह जाएगी सिर्फ़ इश्क़ की दौलत जो तूने कमाई है तेरे साथ जाएगी ।
अपने उरूज़ पर इतना ग़ुरुर न कर इंसा को अर्श़ से फर्श़ पर आने में देर नहीं लगती ।
व़क्त की ग़र्दिश के मारोंं को कभी अ़दना ना समझ
मिट्टी में पड़ा सोना कभी अपनी हैसिय़त नहीं खोता।
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An ex banker and financial consultant.Presently engaged as Director in Vanguard Business School at Bangalore....

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