
Jul 12, 2016 · गज़ल/गीतिका
ग़ज़ल (मौका)
ग़ज़ल (मौका)
गजब दुनिया बनाई है, गजब हैं लोग दुनिया के
मुलायम मलमली बिस्तर में अक्सर बह नहीं सोते
यहाँ हर रोज सपने क्यों, दम अपना तोड़ देते हैं
नहीं है पास में बिस्तर ,बह नींदें चैन की सोते
किसी के पास फुर्सत है, फुर्सत ही रहा करती
इच्छा है कुछ करने की, पर मौके ही नहीं होते
जिसे मौका दिया हमने , कुछ न कुछ करेगा बह
किया कुछ भी नहीं ,किन्तु सपने रोज बह बोते
आज रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते
ग़ज़ल (मौका)
मदन मोहन सक्सेना

मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना संपादन :1. भारतीय सांस्कृतिक समाज...

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