गजल
उदधि बिन लहर का गुजारा नहीं था
मगर बिन मिलन भी पियारा नहीं था
सहे अनगिनत जख्म जब इश्क म़ें वे
बना जो बंधन कब करारा नहीं था
जवां हो चली रोज उनकी मुहब्बत
हुआ कोन सा मोहक इशारा नहीं था
करे आलिंगन उठ लहर गिर अधोगति
बहुत प्रेम से खुद को वारा नहीं था
सुर लहरियों सी मिले साँस नित ही
बचा अब हमारा तुम्हारा नहीं था
बसी था सुरम्ये तटे जो जहाँ यह
मिला था न दूसरा किनारा नहीं था

डॉ मधु त्रिवेदी
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डॉ मधु त्रिवेदी शान्ति निकेतन कालेज आफ बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस आगरा प्राचार्या, पोस्ट...

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