
Nov 1, 2018 · कविता
** कहानी माँ की **
माँ तो केवल माँ होती है
कभी धूप तो कभी छाँव होती है
कभी कठोर तो कभी नम
खुद तपती धूप को सहकर
हमें आँचल में छुपाती है
आप गीले में सोकर हमें
शीत कहर से बचाती है
खुद जिंदगी का जहर पीकर
हमें अपना अमृत पिलाती है
पता नहीं माँ खुद मरमर के
हमें कैसे जिलाती है हम भूल जाते हैं मां,
जब खुद अपने कदमों पे चलते हैं
कलेजा माँ का जलता और हम चैन से सोते हैं
कभी लिपटे रहते थे माँ के आँचल से ….
आज …..बीबी के आगोश में सोते हैं
बांटते है माँ की ममता को खुद ग़ैर होकर रहते हैं
ज़रा याद करलो उसको
जो कभी मैला धोती थी तुम्हारा
बस इतनी-सी थी माँ …..की…….. कहानी ।।
मधुप बैरागी
(भूरचन्द जयपाल )
बीकानेर
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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मैं भूरचन्द जयपाल 13.7.2017 स्वैच्छिक सेवानिवृत - प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, कानासर जिला -बीकानेर...


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