
Jun 29, 2016 · मुक्तक
कलम घिसाई एक मुक्तक 32 मात्रिक भार की
आज मैं ऊँचे आसन पर मसनद के सहारे बैठा हूँ।
देख जमीन पर लोगो को खूब घमन्ड में ऐंठा हूँ।
इस आसन पर चढ़ने में पर कितना जियादा गिरा हूँ में।
पता नही किस किस के दर पर उनके चरणों में लेटा हूँ।
मधु गौतम 9414764891

मै कविता गीत कहानी मुक्तक आदि लिखता हूँ। पर मुझे सेटल्ड नियमो से अलग हटकर...

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