" ऐसी गई ठगी , कानों सुनी न - अधर धरी "
एहसासों की चौखट पर ,
मन का नर्तन !
मधुर कल्पनाओं का नित ,
होता रहा सृजन !
पवन झरोखों की थपकी पर ,
खोई सुध री !!
सुधियों के दरवाजे पर ,
दस्तक दे दी !
उम्मीदें सब ऐसे ही ,
परवान चढ़ी !
छुअन जगाती रही रात भर ,
अनुभूति पसरी !!
चाहत की दरकार अभी ,
सच कायम है !
पलकों पर के ख़्वाब सभी ,
ताज़ा दम हैं !
बदले बदले से बस तुम हो ,
मैं चकित , ठहरी !!

भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
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