आ जाओ यारों लगाते हैं जाम
हो गई शाम दे रही है ये पैगाम
आ जाओ यारो लगाते हैं जाम
दिन भर का काम करे परेशान
होती थकान जब पड़ती शाम
अफरा तफरी में रहते हो खोये
ढल गया दिन हो गई अब शाम
खर सा बन,करें काम दिन रात
संध्या दे दस्तक, बंद करो काम
दिनचर्या व्यस्त अरमान धवस्त
सूर्यास्त हुआ, करो तुम आराम
सारा दिन फिरते, तुम मारे मारे
सुबह से जाने कब हो गई शाम
तनबदन हो जाए अलसाया सा
हो जाओगे दुरस्त लगा के जाम
हो गया अंतराल मिले हम आप
हो जज्बाती पिएंगे दो चार जाम
दुनियादारी में हम खुद को भूले
आओ झट से,रंगीन करेंगें शाम
जगत सारा लोभ माया में खोया
दुर्व्यसनी हुए सारे यहाँ सरेआम
मानवीय झूठा चोला ओढे हुए हैं
बेईमानी मक्कारी करें खुलेआम
हो गई शाम दे रही है ये पैगाम
आ जाओ यारो लगातें हैं जाम
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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