Apr 18, 2020 · कविता
आत्मसात्
पिरयवर मेरे बात करो
दृषिट से आघात करो
मै तो तुम्हारी हो गई पिरयतम
मुझ को आत्मसात् करो
अपनी भुज़ाओं में अलकृंत कर लो
हृदय में मे अपने झंकृत कर लो
मैं गिरी तुम्हारे चरणों में
कुछ तो तुम शुरूआत करो
मुझ को आत्मसात् करो
सानिध्य में तुम्हारे बैठूं मै
तुम्हारे प्रेम पर ऐठूं मैं
कह दी मैनैं व्यथा अब सारी
कुछ मेरे सरताज़ करो
मुझ को आत्मसात् करो
उन को किचिंत ज्ञान नहीं है
उन बिन मुझ में पराण नहीं है
मेरे पिरयवर हो ज़ाओ मेरे
प्रभु कुछ ऐसा झंझावात करो
मुझ को आत्मसात् करो


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