आखिरी दम तलक नहीं बुझती
आखिरी दम तलक नहीं बुझती
हवस मेरी सुलह नहीं करती
जब से जन्मा हूँ बटोरता ही रहा
संग्रह की प्रवृति नहीं मिटती
अगली पीढ़ी नकारा ही होगी
मन से शंका ये क्यूं नहीं मिटती
लोग ईमान तलक बेच रहे
प्रेम रस की दुकां नहीं मिलती
ढूंढ ही लेते दोष दूजों में
अपनी गलती मगर नहीं दिखती
मन का शीशा क्यों इतना धुंधला है
असली तस्वीर ही नहीं दिखती
घुल चूका है तनाव रिश्तों में
धूप आँचल से अब नहीं रूकती
प्रदीप तिवारी
9415381880

प्रदीप तिवारी 'धवल'
Lucknow
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मैं, प्रदीप तिवारी, कविता, ग़ज़ल, कहानी, गीत लिखता हूँ. मेरी तीन पुस्तकें "चल हंसा वाही...

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