
Nov 24, 2018 · कविता
आँखों की नमी
माँ की आँखों में नमी से क्या फर्क पड़ता है,
बेटा कहाँ इन बूढी आँखों को पढता है…
मीलों चलाया था, जिसे ऊँगली थाम कर,
उसे पैरों की लाठी का खर्चा बड़ा लगता है..
माँ की आँखों में…….
आज फिर बूढी माँ को ज़िंदा देख मुँह चिड़ा गया,
वो समझी, चश्में का नंबर बढ़ गया लगता है..
माँ की आँखों में…..
ये जहाँ ना था ,तो तेरी कोख ही थी आशियाना मेरा,
आज मेरे घर में ,तेरा छोटा सा इक कोना बड़ा अखरता है…
माँ की आँखों में……
ऐसी क्या बुलंदी पे बिठा दिया हे तुझको,
की चेहरे की दरारों का दिखना भी मुश्किल सा लगता हे..
माँ की आँखों में …..
तू अब बड़ा हो गया, या आदमी बड़ा हो गया,
खैर ! मुझे तो तेरे होने का एहसास ही बड़ा लगता है..
माँ की आँखों में नमी से क्या फर्क पड़ता है,
बेटा कहाँ इन बूढी आँखों को पड़ता है।
नाम – अमन शर्मा (उदयपुर)
This is a competition entry: "माँ" - काव्य प्रतियोगिता
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