
May 10, 2020 · गज़ल/गीतिका
अम्मा
उंगली पकड़ा के चलना सीखाती है मां
हर ज़ख्म पर मरहम लगाती है मां
जमाना जब भी हमें ठोकर लगाया
उठा कर अपने सीने से लगाती है मां
जब भी भटके मंजिल की तलाश में
मेरे लिए रात भर खुदा को पुकारती है मां
हम भले ही पचास साल पार करले
मेरे बच्चे की उम्र ही क्या ये सुनाती है मां
तपती धूप से जब भी घर आये हम
तड़फड़ा कर आंचल में छुपाती है मां
मां है तो पूरा दुनिया है हरा -भरा
हमारे खातिर कितने दुःख उठाती है मां
मायके से जब भी ससुराल जाती है” नूरी”
आंखों में आंसू लिए दरवाजे पर आती है मां
नूरफातिमा खातून “नूरी”
10/5/2020
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