
Feb 23, 2021 · कविता
अब शीश झुकाना छोड़ दें।
अब शीश झुकाना छोड़ दें ,वार करना सीख ले।यह जमाना है उनका दो यहां की , दो वहां की करना सीख ले।इन पर असर नहीं होगा किसी भी ज्ञान का।सब तीर बेअसर हुए बखान का।। इनसे मिलना जुलना सीख ले।अब जाग और जगा अपने अंदर की शक्ति को।अब तू शिकार करना सीख ले।छोड़ दें इस गुलामी को सर ताज बनना सीख ले।अब तक बनता रहेगा बे,कूफ बनना छोड़ दें।बदल गया जमाना ,झूठ पर सवार है जिन्दगी,।तूफानी मोड़ पर सभंलना सीख ले। मिलेंगे सफर में कई,संगी साथी उनसे व्यवहार बनाना सीख ले।।

Li.g.86.ayodhoya.nagar.bhopal.pin..462041.

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