
Jun 18, 2016 · कविता
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घनाक्षरी -सभी स्नेही मित्रों को सादर नमन-
छम छम बरसात, झूमते सुमन पात,
हरियाली कण कण, धरा सरसा रही।
गरज गरज घन,भिगो रहे तन मन,
बिजुरी से लिपट जी, घटा हरसा रही।
मन ये मयूर आज, थिरके हृदय साज,
बूँद बूँद सावन की, नेह बरसा रही।
नैन यही चाहे श्याम, दरशन अभिराम,
चातक बनी है प्यास, जिया तरसा रही।
दीपशिखा सागर-

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