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8 Jul 2016 · 1 min read

ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)

ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)

हिन्दू देखे ,मुस्लिम देखे इन्सां देख नहीं पाया
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में आते जाते उम्र गयी

अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
हर इन्सां की एक कहानी सबकी ऐसे गुजर गयी

अपना हिस्सा पाने को ही सब घर में मशगूल दिखे
इक कोने में माँ दुबकी थी , जब मेरी बहाँ नजर गयी

दुनिया जब मेरी बदली तो बदले बदले यार दिखे
तेरी इकजैसी सच्ची सूरत, दिल में मेरे उतर गयी

ग़ज़ल (सबकी ऐसे गुजर गयी)
मदन मोहन सक्सेना

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