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15 Nov 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/शिकायतें

शिकायतें बहुत हैं तुझ से, जो मैं करने लगूँ तो ग़लत
कई रंग छोड़के तेरी तस्वीर में,इक रंग भरने लगूँ तो ग़लत

लगता है तू भूल गया या तूने ही मुझें कुछ भुला दिया
अब जो भी है तू बिगड़ने दे ,मैं ग़र सुधरने लगूँ तो ग़लत

तू थोड़ा थोड़ा नूर बरसाया कर इतना तो किया कर
मैं इतने में ही जी लूँगा ,तुझ से बिछड़के मरने लगूँ तो ग़लत

मुझें तेरे साथ साथ चलना है हर सफ़र में साथ चलना है
ऐ मेरे हमसफ़र तेरे बिन मैं जहाँ पाके उभरने लगूँ तो ग़लत

मुझें तुझ से है मुहब्बत कुछ ऐसे ,है चकोर को चँदा से जैसे
मैं तुझे छोड़कर किसी औऱ से मुहब्बत करने लगूँ तो ग़लत

~अजय ‘अग्यार

1 Like · 223 Views
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