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29 Jul 2017 · 1 min read

“हाऊ मच दिस…

“हाऊ मच दिस…

इक दोई चार…
ना बेटा,
इक दोई चार ना,
एक दो तीन चार…
सुबह सुबह की यह करतल ध्वनि,
कानों को महफूज़ करती थी,
आज भी सुनता हूँ तो,
खुद का कल याद आ जाता।

हाऊ मच दिस डेड….??
वन टू थ्री फ़ोर…
जवाब ……!!
बरसो से ईक काँच टूटा हैं,
यह देखन में नहीं आती तेरे,
अब इस अनपढ़ से पूछता,
हाऊ मच दिस डेड..???
–सीरवी प्रकाश पंवार

Language: Hindi
342 Views
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