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19 Oct 2018 · 1 min read

हर वर्ष दशहरा आता है

हर वर्ष दशहरा आता है
अन्याय पर न्याय की
जीत दर्ज कराता है

न्याय का तो पता नहीं
अन्याय
हर वर्ष बड़ा हो जाता है
हर वर्ष दशहरा आता है

रावण का भारी-भरकम
पुतला बनवाया जाता है
सामर्थ का अपनी-अपनी
फिर लोहा मनवाया जाता है

लंकाधिपति की गरिमा का
रख ध्यान वर्चस्वपति,
अधिनायक कुलहंता
को खोजा जाता है
हर वर्ष दशहरा आता है

कुल के वसीयतदारों को
नाते रिश्तेदारों को
राक्षस कुल के मतवालों को
ससम्मान बुलाया जाता है
हर वर्ष दशहरा आता है

ढोल-नगाड़े फूल-फटाके
जलसा आलीशान कराया जाता अपने ही कुल के चिराग के हाथों
रावण दाह कराया जाता है
हर वर्ष दशहरा आता है

हे राम तुम तो सर्वज्ञ थे
क्यों गलती तुम ने कर डाली
कितनों को तुमने मारा था
कुल द्रोही को न तारा था
जो उसको मारा होता तो
बस राम विजय उत्सव होता
कद रावण का
हर बार नहीं ऊंचा होता
उस वंश के अंतिम बीज को
जो तुमने मारा होता
रावण दहन
फिर न दोबारा होता

मुक्ति पाने की खातिर
राम रिझाने की खातिर
कुल द्रोह का
दाग मिटाने की खातिर
भाई को अब हर साल जलाता है
अब तो कवि कल्प बस यही गुनगुनाता है
हर वर्ष दशहरा आता है
रावण ही रावण को जलाता है

इसका अंतिम बंध

अरे नादानों
कुछ तो जानो
राम ने रावण को केवल मारा है
सारे रावण कुल को तारा है
लेकिन दाह कर्म पर तो
परिजन
केवल
अधिकार तुम्हारा है
इसी आश में
हर वर्ष दशहरा आता है
रावण ही रावण को जलाता है

Language: Hindi
434 Views
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