हम तुम्हें बुलाने से रहे
घर मेरा फकीरों के बस्ती में था रास्ते पथरीले पुराने से रहे
तुम उस रास्ते चल के आने से रहे हम तुम्हें बुलाने से रहे
अनजाने ही सही तुम से इक अजब सा रिश्ता बना
तुम इस रिश्ते को सजाने से रहे हम इसे भुल जाने से रहे
इश्क नाम के दरिया में जज़्बात के फूल बेसाख्ता तैरते रहे
परवा नहीं तुम्हें जज्बातों का तो भला हम क्यूं बेपरवा से रहें
ये बस्ती है इश्क वालों कि यहां दिल में नाम ए यार के छाले रहते हैं
दिल में जब तुम रहते हो, तो बस्ती में हम तुम्हें बुलाने से रहे
~ सिद्धार्थ