Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Sep 2016 · 1 min read

हम उन्हें अच्छे नहीं लगते (कविता)

इस शस्य श्यामला भारत भूमि की
हर चीज उन्हें अच्छी लगती है
नदी, झरने, ताल-तलैया, सब कुछ….

पीले-पीले सरसों हों
या बौर से लदी अमरायी
या फिर
हमारे खून पसीने से लहलहाती फसल
सब कुछ उन्हें बहुत भाती है

हमारे श्रम से बनी
ऊँची-ऊँची अट्टालिकायें
उन्हें बहुत सुकून देती हैं

पीपल का वृक्ष हो या
तुलसी का पौधा
या फिर दूध पीती पाषाण मूर्तियाँ
इन सबकी उपासना उन्हें अच्छी लगती है
पर हम उन्हें अच्छे नहीं लगते

सिनेमा हाल में एक ही कतार में बैठकर
हम फ़िल्में देखते हैं जरूर
पर चारपाई पर बैठकर
हमारा पढ़ना-लिखना उन्हें अपमानजनक लगता है

हम भी हैं इसी वसुंधरा की उपज
यह देश हमारा भी है जितना कि उनका है
परन्तु खिलखिलाते हुए हमारे बच्चे
उन्हें अच्छे नहीं लगते

खेतों में काम करती हुई
हमारी बहू-बेटियां
उनकी पिशाच वासनाओं का शिकार होती हैं
और हमारी सरकारी नौकरी
उनकी आँखों की किरकिरी है

हम घर में हों या बाहर
बस से यात्रा कर रहे हों
या फिर ट्रेन से
किसी संगीत सभा में हों
या स्कूल में
वे जानना चाहते हैं सबसे पहले
हमारी जाति
क्योंकि सिर्फ उनको ही पता है
हमारी नीची जाति होने का रहस्य

वे चाहते हैं कि
हम उनके सामने झुक के चलें
झुक कर रहें
झुक कर जियें
एक आज्ञा पालक गुलाम की तरह
– सुरेश चन्द

Language: Hindi
370 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
शब्द✍️ नहीं हैं अनकहे😷
शब्द✍️ नहीं हैं अनकहे😷
डॉ० रोहित कौशिक
छीना झपटी के इस युग में,अपना स्तर स्वयं निर्धारित करें और आत
छीना झपटी के इस युग में,अपना स्तर स्वयं निर्धारित करें और आत
विमला महरिया मौज
माता पिता नर नहीं नारायण हैं ? ❤️🙏🙏
माता पिता नर नहीं नारायण हैं ? ❤️🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
‘ चन्द्रशेखर आज़ाद ‘ अन्त तक आज़ाद रहे
‘ चन्द्रशेखर आज़ाद ‘ अन्त तक आज़ाद रहे
कवि रमेशराज
"लाभ का लोभ”
पंकज कुमार कर्ण
मित्र भाग्य बन जाता है,
मित्र भाग्य बन जाता है,
Buddha Prakash
मै ठंठन गोपाल
मै ठंठन गोपाल
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
नादान था मेरा बचपना
नादान था मेरा बचपना
राहुल रायकवार जज़्बाती
रोना भी जरूरी है
रोना भी जरूरी है
Surinder blackpen
मेरे हर शब्द की स्याही है तू..
मेरे हर शब्द की स्याही है तू..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त  - शंका
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त - शंका
DR ARUN KUMAR SHASTRI
कामनाओं का चक्रव्यूह, प्रतिफल चलता रहता है
कामनाओं का चक्रव्यूह, प्रतिफल चलता रहता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
अनकहे शब्द बहुत कुछ कह कर जाते हैं।
अनकहे शब्द बहुत कुछ कह कर जाते हैं।
Manisha Manjari
एक महिला तब ज्यादा रोती है जब उसके परिवार में कोई बाधा या फि
एक महिला तब ज्यादा रोती है जब उसके परिवार में कोई बाधा या फि
Rj Anand Prajapati
कितने छेड़े और  कितने सताए  गए है हम
कितने छेड़े और कितने सताए गए है हम
Yogini kajol Pathak
माना के गुनाहगार बहुत हू
माना के गुनाहगार बहुत हू
shabina. Naaz
वृक्षों का रोपण करें, रहे धरा संपन्न।
वृक्षों का रोपण करें, रहे धरा संपन्न।
डॉ.सीमा अग्रवाल
दृष्टि
दृष्टि
Ajay Mishra
#मुक्तक
#मुक्तक
*Author प्रणय प्रभात*
नया भारत
नया भारत
दुष्यन्त 'बाबा'
"मनुष्यता से.."
Dr. Kishan tandon kranti
अधूरे ख़्वाब की जैसे
अधूरे ख़्वाब की जैसे
Dr fauzia Naseem shad
दिल की गुज़ारिश
दिल की गुज़ारिश
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
मन की पीड़ा
मन की पीड़ा
पूर्वार्थ
शाम के ढलते
शाम के ढलते
manjula chauhan
2927.*पूर्णिका*
2927.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
खुदकुशी नहीं, इंकलाब करो
खुदकुशी नहीं, इंकलाब करो
Shekhar Chandra Mitra
इसमें हमारा जाता भी क्या है
इसमें हमारा जाता भी क्या है
gurudeenverma198
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
कर्म से विश्वाश जन्म लेता है,
Sanjay ' शून्य'
क्या यह महज संयोग था या कुछ और.... (3)
क्या यह महज संयोग था या कुछ और.... (3)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...