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9 Jul 2017 · 1 min read

हमदर्द कैसे कैसे

हमदर्द कैसे कैसे हमको सता रहे हैं
काँटों की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं

मैं भी समझ रहा हूँ मजबूरियों को उनकी
दिल का नहीं है रिश्ता फिर भी निभा रहे हैं

भटका हुआ मुसाफ़िर अब रास्ता न पूछे
कुछ लोग हैं यहाँ जो सबको सता रहे हैं

पलकें चढ़ी ये आंखें जो नींद को तरसतीं
सपने मगर किसी के इनको जगा रहे हैं

मग़रूर आप क्यों हैं, हर बात में नहीं क्यों
अब आप फ़ायदा कुछ बेजा उठा रहे हैं

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