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1 Nov 2018 · 1 min read

हंसती रहती हो मां(गीत)

खुद में इतने दर्द समेटे
कैसे हँसती रहती हो माँ

ध्यान बराबर सबका रखतीं
अपनी सुध-बुध बिसराई है
कभी निहारो जाकर दर्पण
बालों में चाँदी आई है
बोझ सभी का ढोतीं दिल पर
तुम कितना कुछ सहती हो माँ
खुद में ………….

दुखी हुआ जब भी मन मेरा
तब आँसू पौंछे आँचल से
जाने कितना सुंदर हूँ मैं
तिलक लगाती हो काजल से
मेरे सारे दुख धो देतीं
गंगाजल सी बहती हो माँ
खुद में ……….

ईश्वर की सर्वोत्तम रचना
पृथ्वी पर जननी कहलाई
शब्द नहीं गुणगान करूँ जो
तुम हो ठंडी सी अमराई
घुट-घुटकर खुद में जीती हो
कभी नहीं कुछ कहती हो माँ
खुद में इतने दर्द समेटे
कैसे हँसती रहती हो माँ

सुमित सिंह ‘मीत’
मुरादाबाद

7 Likes · 56 Comments · 730 Views
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