सोच लो फिर दुआ न पाओगे
ग़ज़ल
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बह्र -?
बह्रे ख़फीफ़ मुसद्दस मख़बून
वज़्न ?
212 212 1222
??
दिल लगा कर वफा न पाओगे
दर्दे दिल की दवा न पाओगे
??
मिल रहे अश्क अब मुहब्बत में
इश्क में मुस्कुरा—— न पाओगे
??
छोड़ दी—— बंदगी बुजुर्गों की
सोच लो फिर —-दुआ न पाओगे
??
जख्म खाकर –भी चुप रहोगे पर
दाग दिल के—- दिखा न पाओगे
??
आतिशे इश्क लग गई तो फिर
तुम कभी भी —बुझा न पाओगे
??
राज इक बार —खुल गया हो तो
बात फिर तुम —–बना न पाओगे
??
इन हसीनों की —-ऐसी फितरत है
इश्क का कुछ —-सिला न पाओगे
??
पीठ में घोंपते ————–छुरा हैं ये
इनसे दामन ———बचा न पाओगे
??
शबे फुर्क़त——— तुम्हे रुलाएगी
चश्म नम फिर —–सुखा न पाओगे
??
जिंदगी तो ———-भटक कर बीते
उम्र भर ————-रास्ता न पाओगे
??
गर नजर से पिला तो पी लूंगा
मयक़दे की पिला न पाओगे
??
मौत लाजिम है आएगी “प्रीतम”
इससे बच कर के जा न पाओगे
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)