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24 Aug 2019 · 2 min read

सुहागरात

गृहस्थ जीवन की पावन शुरुआत थी
बिछी हुई सुहागरात की सेज थी
दो प्यासे अन्जान चेहरे आत्माओं का
होना जो स्वर्णिम पवित्र मिलन था
काली अर्द्ध सर्द रात का प्रथम प्रहर था
पुष्पदल बिखराव से सजा बिस्तर था
बैठी उस पर सहमी घबराई हयाई सी
पिया मिलन को व्याकुल उतावल तनबदन
कोमार्य कुआँरा हुस्न लज्जा समेटे
भरे यौवनावस्था का घूंघट ओढा था
हुआ आगमन उधर से भयभीत सा
उत्तेजित व्याकुल प्यासे पंछी का
दोनो लज्जाए हयाए घबराए थे
कैसे करें नवजीवन मिलन शुरुआत
मीठी फैली सुगंध, चुप थी कायनात
धीरे धीरे लज्जा घुंघट उठ गया
हुए साक्षात दर्शन खिले मखमली हुस्न रूप के
खिली हयाए चेहरों पर मंद मंद मस्त मुस्कान
हल्की मंद मंद वार्तालाप से गृहस्थ पारी की शुरुआत
छिड़ गई प्रेम की झड़ी, हुई चुम्बनों की घनी बरसात
अधरों से अधर मिले लिए हाथों म़े हाथ
तेज सांसों के तूफां छिड़ गए ,हुआ ओष्ठ रसपान
बांहों के कसावे में कस गए प्यासे थे प्यासे,तड़फते बदन
लिपटते लिपटते लिपट गए दो पंछी एकसाथ
अंग से अंग मिलता गया लगी अग्नि अपार
सिरहनेंं,तरंगें सी उठी अकड़ उठा शरीर
सागर की लहरों सी लहराते स्तन उभार
ज्वालामुखी समान फटते जवानी से भरे हुए अंग प्रत्यंग
दहकते अंगारों समान दहकते बहकते गुलाबी गोरे अंग
आँखें नशे में चूर थी हो रहा था प्रेम प्रहार
अर्द्ध मुर्छा मे हो गए भूल गए शेष संसार
रहे परस्पर अंग चूमते जो थे आग समान
संपिनी सी बल खाती शर्म हया को भूल
विचरण करती तनबदन पर जग सारे को भूल
स्तन फूलते फूल गए बदलने लगे आकार
पिया हाथ समा गए उछल कूद में हुए निराकार
अंग भग सहलाते छेड़ते दोनों हो गए वस्त्रहीन
परस्पर बल खाते लिपट गए ज्यों प्ययासे पंछी नीर
चिकने केले तने समान थे चमक रहे थे गोरे जांघ अपार
बीच म़े भट्टी तप रही उगल रही तपस अपार
सुन्दर भारी नितम्ब उठे पठार से उठ उठ करें पुकार
वक्ष चुचुक प्यासे अर्से के करें चूस पुकार
हाथों मुंह में आके सनम के तृप्त हुए बेशुमार
मर्द अंग शिलासमान सख्त करें भग से मांग
बरसों से लगी आग को शान्त करो मेरी जान
सोनजुही बेल सी लिपट गई पाकर.सहारा पास
द्विज सी फड़फड़ाई फिर हो गए एकदम शान्त शिथिल
मोम समान थी पिंघल रही दोनों की जवानी एकसमान
अंगों से अंग खह गए हुई अति तीव्र प्रैम बरसात
धुर्वों की बर्फ सा यौवना पिंघला दोनों का एकसमान
पानी पानी हो गया था जब थमा जवानी का उफान
क्षत विक्षत कर तनबदन को थम गया तेज तुफान
मंद मीठी मुस्कान थी पूरे हुए अनुराग अरमान
थक हार निढाल हो गए अब तृप्त जवां शरीर
शान्ति तृप्ति ठहराव अनुभूति प्रेमपूर्ति भरी थी सुहागरात

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
3 Likes · 1604 Views
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