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25 Mar 2020 · 1 min read

“सिया के राम”

“सिया के राम”
गूँजता है तेजघन, सुनो जानकी-प्राण,
कैसा है ये विधि का विधान??
पूरी श्रद्धा से तुम्हें बुलाते है,
पर ना जाने कहाँ चुक जाते हैं
जो स्वयं में रावण को ही पाते हैं।

हे नयनलोचन सबके मन में है प्रश्न आज,
तुमने क्यों नहीं रखा सिया की लाज?
तुम तो थे सर्वज्ञाता सबकी थी पहचान,
फिर क्यों दिया निज सीता को वनवास।

रावण….तुमने भी क्या खूब स्वाँग रचाया,
कलयुग में सबने सबमें तुमको पाया।

हे रघुनन्दन..तुम तो हो दुराक्रांत,
फिर क्यों न कर पाये पृथ्वी-तनया को श्रांत?
स्तब्ध है मन,हृदय विकल है बार-बार,
इस अकिंचनता में जीवन भी लगता है भार।

क्या उपाय करे हे राजीव-नयन,
छूना चाहते है तुम्हारे नवनीत चरण।
है महाशक्ति भी तुममें विलीन,
तभी तो कहलाते हो पुरूषोत्तम नवीन।

Language: Hindi
2 Likes · 283 Views
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