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25 Aug 2020 · 3 min read

सरकारों को सोचना होगा

सरकारों को सोचना होगा।

लोग मर रहे हैं आत्महत्याएँ पर आत्महत्याएँ हो रही हैं ये निरंकुश वाली घटनाएँ अमूमन रोज़ हो रही हैं जबसे ये कोरोना हुआ और लॉकडाउन कि स्तिथि पैदा हुई तब से लगभग तीन-सौ से ज्यादा लोग इसके शिकार हो गए तब से आत्महत्याओ का जैसे पहाड़ टूट रहा हो। सोचने वी बात ये है कि आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा नौजवान हैं।

जी बिल्कुल वहीं नौजवान जिन्होंने कि अभी अपनी ज़िंदगी की शुरुआत की है या कहें तो ज़िंदगी की पहली एक-आध सीढियाँ ही वे पार कर पाए या पार करने की लालसा में थे कुछ ने तो सीढियाँ देखी ही नहीं वे पहले ही चलने को विवश हो गए। हम किस युग में जी रहे हैं एक ओर हम अपनी युवा ताकत का लोहा दुनिया के सामने मनवाने पर तुले हैं वहीं ठीक दूसरी ओर हम इस ताकत को गर्त में धेकेले जा रहे हैं, नतीजा सबके सामने हैं।

नौकरियाँ चली गयी, लाखों जो थोड़ा बहुत रोजगार कर रहे थे उनमें से हज़ारों बेरोजगार हो गए, जिनके पास कुछ बैंक बैलेंस था वो अब खत्म हो गया या कहें खत्म के कगार पर है, कुछ ने कर्जा लिया था वो भी अब खत्म हो गया, हज़ारों की तादात में ऐसे भी हैं जो इस आस में हैं कि कभी तो सूरज उगेगा कभी तो ये बादल छटेंगे, इसमें कई बड़े जिंदादिली इंसान हैं वे खुद को खुद में ढाँढस बधा रहे हैं, कुछ अकेले में रोने को मजबूर हैं हालाँकि आँसू नहीं निकलते वे सब सूख गए, किस्सा सुनाएं तो किसे सुनाएं, इज़्ज़त का भी सवाल है हाथ-पैर बहुत मार लिए सब उनमे भी जान नहीं बची, ऐसी बुरी स्तिथि भी आएगी किसी ने नहीं सोचा था।

टीवीयों पर डिबेट हो रहे हैं वहाँ पर भी दो धड़ें हैं, दुकाने उन्ही की बेहतर चल रही है, दिनरात चिल्लाएं जा रहे हैं, कोई भी इन आत्महत्याओं पर ज़िक्र नहीं करता ऐसा करने से TRP में बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा।
बेरोजगारी पर जो एक-आध बोल देते हैं उनके पास समाधान नहीं हैं ऐसा करने से वे बेरोजगारों की टेंशन और बढ़ाने का काम कर रहे हैं, नेताओं के पास जनता के लिए समय नहीं है जिसके पास समय है वो समय दे रहा है मगर उसकी जेब खाली है क्योंकि वो फिलहाल विपक्ष में है, सत्ता में आते ही वो व्यस्त हो जाएगा फिर दूसरे दल के नेता उसका ये भ्रमण वाला काम सम्भालेंगे ऐसा सदियों से होता आया है, किस तरह की जनता को कब कौनसा डोज देना है ये बात सभी राजनीतिज्ञ भली भांति जानते हैं, वरन जनता तब भी पीड़ित थी जब कम पढ़े लिखे लोग थे और आज भी जब अमूमन सभी वेल एजुकेटेड हैं।

सरकारी रूल्स केवल सरकारों या VVIP’s को छोड़कर सभी पर लागू हैं, सरकारें बन रही हैं और तोड़ी जा रही हैं जोरों से प्रचार हो रहा है रैलियों में भीड़ है भीड़ में वही लोग हैं जो 500 और एक पव्वा में बिक गए, वो कोई दूसरी ग्रह का प्राणी नहीं है हमारे ही बीच का किसी का मामा का दूर का रिश्तेदार का लड़का है, या किसी का पापा का दूसरा लौंडा शायद वो दूसरी पार्टी का दारू पीता है, मगर देश का साधारण शख्स पिता को मुखाग्नि नहीं दे सकता क्योंकि वो क्वारंटीन है हालांकि अब इसमें बदलाव कर दिया गया है। मरने वालों में आपका पड़ोसी भी होगा या दूसरे गली का नौजवान लौंडा भी, मगर तुम चुप हो कर भी क्या सकते हो, फिलहाल अर्द्ध लॉकडाउन है उसके लिए कैंडल मार्च नहीं निकाल सकते, ऐसा करने से कोरोंना हो जाएगा।

सरकारों को सोचना होगा- आत्महत्याएँ रुक सकती हैं उसके लिए रोजगारपूरक कार्य करने पर ज़ोर दें, फिलहाल लोगो की सबसे बड़ी दिक्कत आर्थिकी है, कुछ चीज़ें सोशल मीडिया में देखने को मिल रही है, धरातल पर कुछ नहीं दिख रहा, लोग हल्ला मचा रहे हैं, देश की पद्धति काम नहीं आ रही तो विदेशों वाली पद्धति अपनाओ, मगर बात साफ है जहाँ इसके लिए सरकारें ज़िम्मेदार हैं उतने ही हम लोग भी हमें इस बात को समझना होगा और स्वीकार भी करना होगा, इन्नोवेटर्स की भूमिका हम निभा सकते हैं, शुरुआत करने की आवश्यकता है और वो तभी होगा जब हम डिपेंडेंसी छोड़ेंगे।

✒️Brijpal Singh

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 1 Comment · 306 Views
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