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14 Jul 2017 · 1 min read

सरकारी नाखून

चुभते सदा गरीबों को ही,
सरकारी नाखून.
पट्टी बाँधें हुए आँख पर,
बैठा है कानून.

धर्म और ईमान भटकते.
फुटपाथों पर दर दर.
फलती और फूलती रहती,
बेईमानी घर घर.

सोमालिया रहे सच्चाई,
झूठ बसे रंगून.

पैसे लिए बिना कोई भी,
कब थाने में हिलता.
जेब गरम करता पटवारी,
तब किसान से मिलता.

लगे वकीलों के चक्कर तो,
उतर गयी पतलून.

कभी बाढ़ ले गयी बहा तो,
कभी पड़ गया सूखा.
भरे हुए घर आढ़तियों के,
हर किसान है भूखा.

जीवन भर की खरी कमाई,
सोख रहा परचून.

Language: Hindi
Tag: गीत
397 Views
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