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1 Aug 2020 · 1 min read

समय की मांग

समय की मांग
समय है ऐसा गहराया कि वक्त ने भी धोखा खाया,
अपनों के ही साए में अपनों का ही साथ पराया,
सोची समझी साजिश होती है या गलती का नाम दिया जाता,
अपनी खुशियों क लालच में जीवन जिसका जला दिया जाता है,
क्या गलती की सपने उसको भी सच करने होते हैं,
जीवन में उसको अपने भी रंग भरने होते हैं,
उस दिन एक मां की आंखें खून के आंसू रोती देखी,
एक बाप का फौलादी सीना मोम के जैसे ढलता देखा,
क्यों ऐसे कृत्यों का जवाब नहीं दे पाता कोई ,
उस वक्त इंसाफ दिलाने के खातिर क्यों नहीं आता कोई,
झूलते रहते वर्षों वो मुकदमे तारीखों के फंदों में ,
धोखे और पैसों के दम पर जंग जहां जीती जाती,
दोषी को खुले इजाजत,
निर्दोष को फांसी हो जाती,
मगर भूल मत ऊपर भी एक अदालत है,
ना जुर्म का शोर वहां पर ना पैसों का जोर जहां पर ,
यहां नहीं तो तू वहां तो मुंह की खाएगा अपने हर एक पाप की सजा वहां तू पाएगा,
जीवन है अनमोल उसको ना बर्बाद करो,
खुद खुश रहकर जीवन सबका आबाद करो ,
तोड़ घमंड के झूठे रिश्ते सच्चे रिश्तो का सम्मान करो,
किसी के पावन सपनों का ना तुम अपमान करो! !

Language: Hindi
7 Likes · 12 Comments · 317 Views
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