Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Aug 2020 · 3 min read

शिव कुमारी भाग ९

दादी जब थोड़ी थोड़ी समझ मे आने लगी थी तो वो लगभग ८७-८८ वर्ष की हो चुकी थी, पूरा तो उनको दादाजी भी नहीं समझ पाए होंगे, वे भी आश्चर्यचकित रहते, कि कब क्या बोल उठे?

बस इतना वो और सारे घरवाले जानते थे कि दादी कुछ भी कह सकती है।

कोई कितना भी करीब क्यूँ न हो दूसरे को पूरी तरह कहाँ जान पाता है और इंसान खुद को भी कितना समझ पाता है, अवकाश ही नही होता खुद को उघाड़ कर देखने का। दूसरे की तो बात ही अलग है।

उस उम्र मे थोड़ा झुक कर चलने लगी थी पर उनकी छड़ी हवा मे उठ कर उनका कद बता देती थी और जुबान तो छड़ी से भी काफी ऊंची थी।

उनको मैंने कभी बीमार पड़ते नही देखा, खांसी ,बुखार तो उनकी बातें सुनकर ही पास नही फटकते, कौन उनके कोसने सुनता,और वो ये भी जानते थे कि बुढ़िया के पास उनके सारे इलाज भी हैं।

एक बार पीठ मे एक फोड़ा निकल आया था, माँ ने उनकी पीठ पर एन्टी बैक्टरिन ऑयल लगा के, रुई को टेप से चिपका दिया था,
किसी ने पूछा कि क्या दवा लगाई है, पहले तो उनको थोड़ा गुस्सा आ गया कि दवा का नाम उनको बोलना नही आता,

बोल पड़ी,

कोई हरी हरी सी दवा हैं

दो चार दिन तक घाव की सफाई के समय दर्द से थोड़ा हिलती पर मजाल है कोई दर्द की आवाज़ या चींख निकले। फोड़ा भी उनकी दिन रात गालियां सुनकर डर के मारे भाग ही पड़ा।

कभी कभी गैस की शिकायत हुई, तो इतनी तेज डकारें लेती कि गैस के कान फटने लगते, वो भी सोचती, राम, मैं किसके पास आ गई आज?

एक बार पड़ोस मे गई, हालचाल पूछने पर पता चला, वहां उनके पोते को बुखार है, तभी एक और महिला बोल पड़ी कि पास वाले घर मे भी एक बच्चे की ताबियत ठीक नही है।

दादी फिर विशेषज्ञ की तरह बोलीं,

“च्यारांकानी कोई हवा ही इसी चाल राखी ह”

(चारों तरफ कोई ऐसी हवा चल रही है, जो शरीर मे जाते ही बीमार कर देती है)

सभी ने दादी की बात सुनकर, एक स्वर मे हाँ कहा।

दादी को बस जाड़े से थोड़ी परेशानी जरूर होती, वो ठंड के मौसम मे दो रजाइयां ओढ़ती ,एक शाल और स्वेटर सिराहने रखती,
बकौल दादी, स्वेटर रात मे पहन के नही सोना चाहिए, क्योंकि रात मे वो शरीर का खून चूस लेती है। दिन मे कुछ नही कहती।

हो सकता है, मच्छरों के खानदान की हो?

मैं उनके रजाई ओढ़ने के बाद, थोड़ी देर उसके गर्म होने का इंतजार करता फिर दादी की रजाई मे घुसकर उनसे लिपट जाता।

मेरे आते ही , दादी इस तरह स्वागत करती,

“बालनजोगो छाती छोलन आग्यो”
(कमबख्त, परेशान करने आ गया)

कभी मिजाज अच्छा होता तो बताती कि ये जाड़े का मौसम क्या कहता है
“टाबर न म बोलूं कोनी,
जवान म्हारा भाई
बुड्ढा न म छोडडु कोनी
चाहे किती ओढो रजाई”

(बच्चों को मैं कुछ नही कहता,
जवान मेरे भाई हैं
बूढों को मैं छोड़ता नही हूँ
चाहे वे कितनी रजाइयां ओढ़ले)

हल्की फुल्की बातों मे , एक छोटी सी सीख बता जाती थी,

उनको ये अहसास भी होता होगा कि वो बूढ़ी चुकीं हैं अब!!

तभी कोई घर की बहू उनके पांव दबाने आ जाती। पांव दबाना तो एक बहाना था, उनसे जो आशीर्वाद मिलता, उसकी कहीं न कहीं सबको जरूरत थी।

मैं शरारत मे, कभी अपने पाँव भी सरका देता, मेरा पांव हाथ लगते ही, भाभियाँ हंसी वाला गुस्सा भी दिखाती। दादी को ये पता लगते ही,
“मरज्याणो बिगड़ क बारा बाट होग्यो, माँ बाप तो जाम जाम क गेर दिया, अब दादी संभालो”

(ये दुष्ट,पूरी तरह बिगड़ चुका चुका है, इनके माँ बाप ने तो बस पैदा कर कर के डाल दिया, दादी के भरोसे कि वो उन्हें संभाले अब)

मेरे लिए उनकी ये बातें बेअसर साबित होती थी, क्योंकि भाभी के जाते उन्हें कहानी सुनाने को भी तो राजी करना था!!!

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 303 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
बारिश
बारिश
Sushil chauhan
अपनी अपनी सोच
अपनी अपनी सोच
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
विनम्रता
विनम्रता
Bodhisatva kastooriya
ये मानसिकता हा गलत आये के मोर ददा बबा मन‌ साग भाजी बेचत रहिन
ये मानसिकता हा गलत आये के मोर ददा बबा मन‌ साग भाजी बेचत रहिन
PK Pappu Patel
*कर्ज लेकर एक तगड़ा, बैंक से खा जाइए 【हास्य हिंदी गजल/गीतिका
*कर्ज लेकर एक तगड़ा, बैंक से खा जाइए 【हास्य हिंदी गजल/गीतिका
Ravi Prakash
नया विज्ञापन
नया विज्ञापन
Otteri Selvakumar
◆व्यक्तित्व◆
◆व्यक्तित्व◆
*Author प्रणय प्रभात*
नियम, मर्यादा
नियम, मर्यादा
DrLakshman Jha Parimal
संविधान का पालन
संविधान का पालन
विजय कुमार अग्रवाल
मसल कर कली को
मसल कर कली को
Pratibha Pandey
मईया एक सहारा
मईया एक सहारा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अज़ल से इंतजार किसका है
अज़ल से इंतजार किसका है
Shweta Soni
"कठपुतली"
Dr. Kishan tandon kranti
इंतजार युग बीत रहा
इंतजार युग बीत रहा
Sandeep Pande
जी करता है...
जी करता है...
डॉ.सीमा अग्रवाल
बिषय सदाचार
बिषय सदाचार
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
दिनांक:- २४/५/२०२३
दिनांक:- २४/५/२०२३
संजीव शुक्ल 'सचिन'
गुफ्तगू तुझसे करनी बहुत ज़रूरी है ।
गुफ्तगू तुझसे करनी बहुत ज़रूरी है ।
Phool gufran
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---4. ‘विरोध-रस’ के अन्य आलम्बन- +रमेशराज
कवि रमेशराज
2572.पूर्णिका
2572.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
आपाधापी व्यस्त बहुत हैं दफ़्तर  में  व्यापार में ।
आपाधापी व्यस्त बहुत हैं दफ़्तर में व्यापार में ।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
*जीवन खड़ी चढ़ाई सीढ़ी है सीढ़ियों में जाने का रास्ता है लेक
*जीवन खड़ी चढ़ाई सीढ़ी है सीढ़ियों में जाने का रास्ता है लेक
Shashi kala vyas
💐प्रेम कौतुक-199💐
💐प्रेम कौतुक-199💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
.....*खुदसे जंग लढने लगा हूं*......
.....*खुदसे जंग लढने लगा हूं*......
Naushaba Suriya
अजीब सी बेताबी है
अजीब सी बेताबी है
शेखर सिंह
दोहे
दोहे
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
……..नाच उठी एकाकी काया
……..नाच उठी एकाकी काया
Rekha Drolia
Deepak Kumar Srivastava
Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam"
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
यह जो आँखों में दिख रहा है
यह जो आँखों में दिख रहा है
कवि दीपक बवेजा
खून-पसीने के ईंधन से, खुद का यान चलाऊंगा,
खून-पसीने के ईंधन से, खुद का यान चलाऊंगा,
डॉ. अनिल 'अज्ञात'
Loading...