व्याकुल इंसान
व्याकुल इंसान
दरखत झूमे, सरोवर तीर,
निर्झर निर्झर बहे बयार
पर्ण:समूह के स्पंदन से,
सरगम की निकले तान
शीतल प्रतिच्छाया में,
पंछी समूह करते विहार
मानुष त्रस्त अविचल,
अंत:करण धरे कष्ट अपार
वट वृक्ष शीतलता पाने को
मृगतृष्ना सा व्याकुल इंसान !!
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डी के निवातिया