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15 Feb 2018 · 7 min read

विरासत में मिले शिक्षा व समाजसेवा के संस्कार और शिक्षा से मिला सम्मान

साक्षात्कार आधारित लेख :
विरासत में मिले शिक्षा व समाजसेवा के संस्कार और शिक्षा से मिला सम्मान
– आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
समाजशास्त्र की दृष्टि से संस्कार का सीधा सा मतलब है व्यक्ति के पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे वो आचार-विचार अथवा आदतें जो जन्म से ही उसके व्यक्तित्व का एक लक्षण अथवा विशेषता कही जा सकती हैं। किसी अपवाद के चलते तो आगे चल कर कोई बच्चा चाहे कुछ भी बन जाए, पर बचपन में यदि किसान का बेटा हल और खेतीबाड़ी की बात करता है या फिर एक शिक्षक का बेटा शैक्षिक ज्ञान की बातें करता है और आगे चलकर अपने माता-पिता के कार्य अथवा व्यवसाय को ही अपनाता है तो कहा जाता है कि इसे तो यह सब विरासत में मिला है। यहाँ विरासत का सीधा सा मतलब है कि व्यक्ति की जो भी उपलब्धियाँ हैं उसका अधिकांश, उसे अपने माता-पिता अथवा दादा-परदादा की ओर से मिला है, उसे उस स्थिति तक लाने में उसका नहीं बल्कि उसके पूर्वजों का हाथ रहा है। पर यदि व्यक्ति स्वयं प्रयास न करे तो पूर्वजों का यह हाथ धरे का धरा रह जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जहाँ व्यक्ति के पूर्वजों के प्रयास व्यक्ति की उपलब्धियों के आधार बनते हैं, वहाँ व्यक्ति के मान-सम्मान के सदंर्भ में उसके स्वयं के प्रयास भी काफी महत्व रखते हैं, किन्तु स्वयं के प्रयासों के संदर्भ में भी माता-पिता व पूर्वजों से मिले संस्कारों अथवा विरासत की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहती है। कहा जा सकता है कि व्यक्ति अपने पूर्वजों से प्राप्त किसी धरोहर को कितना सम्भाल कर रख पाता है या इसे कितना विस्तार दे पाता है और कितना नहीं यह सब उसके कार्य एवं व्यवहार पर निर्भर करता है। कुछ व्यक्ति अपनी विरासत को गवां देते हैं तो कुछ इसे दोगुना-चैगुना कर देते हैं।
इसी को दृष्टिगत रखते हुए यदि हम इस समय भिवानी जिले के रा. वरि. मा. रानिला में बतौर प्राचार्य सेवारात श्री जलधीरसिंह कलकल की बात करें तो कह सकते हैं कि उन्हें शिक्षा व समाजसेवा के संस्कार विरासत में मिले हैं और इन्हें अपने जीवन का एक हिस्सा बनाने के फलस्वरूप उन्हें न केवल हरियाणा सरकार की तरफ से राज्य शिक्षक सम्मान से नवाज़ा गया है, बल्कि समाज में भी उन्हें वह सम्मान प्राप्त हुआ है जो सही मायने में एक शिक्षक को होना चाहिए।
गौरतलब है कि शिक्षा व समाजसेवा को समर्पित मिलनसार व्यक्तित्व के धनी जलधीरसिंह कलकल का जन्म 1 जून सन् 1964 को, भिवानी ज़िले के गाँव इमलोटा के एक मध्यवर्गीय शिक्षक परिवार में श्री कमलसिंह के घर श्रीमती मायाकौर की कोख से दूसरे नंबर की संतान के रूप में हुआ, एक बहन आपसे बड़ी है, फिर एक बहन और एक भाई आपसे छोटे हैं। भाई बहन मैट्रिक तक पढ़े और शादी के बाद अपने परिवार व खेती-बाड़ी से जुड़ गए। किन्तु बचपन से ही मेधावी और शिक्षा के प्रति विशेष लगाव रखने वाले जलधीरसिंह ने अपने पिता की विरासत को विस्तार दिया। अपने पैतृक गाँव इमलोटा के हाई स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने वाले जलधीरसिंह कलकल जब कक्षा आठवीं में पढ़ते थे तब अपने मुख्य अध्यापक श्याम सुन्दर चाबा जिसे यह अपना गुरु मानते हैं के मार्गदर्शन में इन्होंने हिन्दी विषय के अंतर्गत आयोजित एक राज्य स्तरीय निबन्ध प्रतियोगिता में भाग लिया और इस प्रतियोतिा में द्वितीय स्थान पर रहने की स्थिति में एच.एस. बराड़, तत्कालीन राज्यपाल हरियाणा से सम्मान पाया। इसके बाद सन् 1980 में अपने ही गाँव के हाई स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई रोहतक से की। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक से विज्ञान संकाय में स्नातक व स्नातकोत्तर की परीक्षा पास करने के बाद जलधीरसिंह कलकल सन् 1985 में बतौर विज्ञान अध्यापक शिक्षा विभाग हरियाणा की सेवा में आए। इनकी प्रथम नियुक्ति भिवानी ज़िले के गाँव सारंगपुर के मिडल स्कूल में हुई। बतौर विज्ञान अध्यापक पन्द्रह साल तक उत्कृष्ट सेवाएं देने के बाद जलधीरसिंह कलकल सन् 2000 में सीधी भर्ती द्वारा स्कूल मुख्य अध्यापक नियुक्त हुए। बतौर स्कूल मुख्य अध्यापक इनकी प्रथम नियुक्ति झज्जर ज़िले के सासरोली गाँव के हाई स्कूल में हुई। इसके बाद भिवनी ज़िले के गाँव मोरवाला और ढाणी फोगाट के हाई स्कूल में अपनी सेवाएं देने के बाद अगस्त सन् 2006 में जलधीरसिंह कलकल की पदोन्नति प्राचार्य पद पर हुई और बतौर प्राचार्य इनकी प्रथम नियुक्ति झज्जर ज़िले के सेहलंगा के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हुई।
गौरतलब है कि शिक्षा, साहित्य, समाजसेवा व खेल गतिविधियों में विशेष रुचि रखने वाले शिक्षक जलधीरसिंह कलकल को जब बतौर स्कूल मुखिया अपनी प्रतिभा का उपयोग करने का अवसर मिला तो शिक्षा, साहित्य, समाजसेवा व खेल आदि विविध क्षेत्रों में इन्होंने न केवल स्वयं विशेष उपलब्धियाँ हासिल की बल्कि अपने साथी शिक्षकों व विद्यार्थियों को भी इसके लिए प्रेरित किया। ‘हरियाणा मास्टरज ऐथेलेटिक्स ऐसोसिएसन’ के बैनर तले चालीस से ऊपर आयु वर्ग में भाग लेते हुए जलधीरसिंह कलकल ने लम्बी दौड़ व ऊँची कूद में कई बार पदक प्राप्त किए। इनके मुख्य अध्यापक काल में सन् 2004-05 और 2005-06 में रा.उ.वि. ढाणी फोगाट की 14 वर्ष से नीचे और 17 वर्ष से नीचे आयु वर्ग की फुटबाल टीमों ने राज्य स्तरीय क्रीड़ा प्रतियोगिता में अपनी उपस्थिति दर्ज़ की। इसी दौरान 12 विद्यार्थियों ने कक्षा आठवीं में और 8 ने कक्षा दसवीं में मैरिट लिस्ट में स्थान पाया। इसी तरह से बतौर प्राचार्य पदोन्नत होने के बाद रा.वरि.मा.विद्यालय सेहलंगा(ज़िला झज्जर, हरियाणा) में सेवा के दौरान सन् 2006-07 और 2007-08 में इनके विद्यालय की लड़कियों की हैंडबाल की टीम और 2009-10 व 2010-11 में बैडमिटन की टीम भी राज्य स्तरीय क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में स्थान पा चुकी हैं और इन टीमों में खेलने वाली खिलाड़ियों में से कुछ का राष्ट्रीय स्तर की खेल स्पर्धाओं के लिए भी चयन हुआ है। अलावा इनके दूसरे कई छात्र-छात्राओं ने ‘एथलेटिक्स’ में भी राज्य एवं राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई पदक हासिल किए हैं।
प्राचार्य जलधीरसिंह कलकल के मार्गदर्शन में विद्यार्थियों को योगा, चारित्रिक व नैतिक विकास, डम्बल, लेजियम, पी.टी., और ड्रिल आदि में पारगंत करने के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, एडस, प्लस पोलियो, कन्या भ्रूण हत्या, अक्षय ऊर्जा, जल संरक्षण, वृक्षा रोपण, बिजली चोरी रोकने व राष्ट्रीय महत्व के लगभग सभी कार्यक्रमों का आयोजन विद्यालय स्तर पर किया गया है। बकौल जलधीरसिंह कलकल इस तरह के आयोजनों के माध्यम से विद्यार्थियों को तो प्रत्यक्ष संदेश दिया ही जाता है, साथ ही प्रभात फेरियों के माध्यम से भी हर सकारात्मक संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर किन्तु प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को पी.टी.ए. अथवा एस.एस.सी. के माध्यम से पुरस्कृत कराकर उनका उत्साहवर्धन किया जाता है ताकि वह अर्थ अर्थात धन के अभाव में पढ़ाई न छोड़ें।
साहित्य में रुचि रखने वाले जलधीरसिंह कलकल ने कवि महेन्द्रसिंह के सानिन्ध्य में जहाँ अनेक कवि सम्मेलनों में भाग लिया है, वहीं सन् 2007 में ‘कन्याभ्रूण की पुकार’ शीर्षक से इनकी एक काव्य पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। इनकी इस पुस्तक में शिक्षा, पर्यावरण, सामाजिक कुरीतियाँ, राजनीति, देशभक्ति व आध्यात्म जैसे विविध विषयों को लेकर रची गई 80 कविताएं शामिल हैं। इनकी अगली पुस्तक ‘हरियाण दर्शन’ प्रकाशन के लिए तैयार है। इसी कड़ी में यदि हम बात करें प्रसारण माध्यमों से इनके जुड़ाव की तो हम कह सकते हैं कि बतौर शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक जागरुक नागरिक के तौर पर भी जलधीरसिंह कलकल आकाशवाणी रोहतक के कई प्रसारणों में भाग ले चुके हैं। इनके मार्गदर्शन में तैयार इनके विद्यालय के बच्चों द्वारा प्रस्तुत ‘बालक मण्डली’ कार्यक्रम का प्रसारण भी आकाशवाणी रोहतक से कई बार हो चुका है।
शिक्षक होने के नाते जलधीरसिंह कलकल ने अध्यापक प्रशिक्षण शिविरों में भी व्यक्तिगत रुचि लेते हुए अध्यापन के प्रति अध्यापकों में निष्ठा के भाव भरने के साथ-साथ विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण, स्काउटिंग भ्रमण कराने और एन.एस.एस. कैम्पों के माध्यम से अल्प बचत, परिवार नियोजन का संदेश, खुले में शौच न जाना आदि के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है। अलावा इसके जलधीरसिंह कलकल रेडक्राॅस सोसाईटी के आजीवन सदस्य हैं तथा अन्य कई शिक्षकों व विद्यार्थियों को रेडक्राॅस की आजीवन सदस्यता के लिए प्रेरित कर चुके हैं। अपने जीवन में 72 से अधिक बार रक्तदान कर चुके शिक्षक प्यारेलाल को जलधीरसिंह रक्तदान के क्षेत्र में अपना आदर्श मानते हुए कई बार रक्तदान कर चुके हैं और जीवन में अपने आदर्श रक्तदाता द्वारा स्थापित रक्तदान आंकड़े को पार करना चाहते हैं।
विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से रोज़गार मिल सके इसके लिए जलधीरसिंह ने समय-समय पर अपने विद्यालय में रोज़गार कैम्प आयोजित करके विद्यार्थियों को विषय विशेषज्ञों से नई-नई जानकारियाँ दिलवाई हैं और अपने स्टाफ के साथ मिलकर इन्होंने स्कूल छोड़ चुके बच्चों का पता लगाकर उन्हें फिर से स्कूल में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया है। इसी का परिणाम है कि गाँव सेहलंगा में आज एक भी ड्राप आउट (स्कूल छोड़ चुका) बच्चा नहीं है। अलावा इसके विद्यालय प्रांगण में महापुरुषों के भित्ती चित्र बनवाने, दीवारों पर स्लोगन लिखवाने और अपने विद्यालय में पेंटिंग तथा भाषण प्रतियोगिता आदि करवाने आदि के पीछे भी जलधीरसिंह कलकल का मक़सद यही रहता है कि विद्यार्थियों में नैतिक गुणों का विकास हो, वे स्वावलम्बी बने और एक सुदृढ़ राष्ट्र व सभ्य समाज का निर्माण करें।
राष्ट्र व समाज के प्रति ऐसी सोच रखने वाले जलधीरसिंह कलकल प्रशासन व उल्लेखनीय सामाजिक संस्थाओं द्वारा एक नहीं, बल्कि अनेक बार सम्मानित हो चुके हैं। इन्हें मिले पुरस्कार एवं सम्मानों की सूची बहुत लम्बी है। इस लम्बी सूची में से वर्ष 2009 में इन्हें हरियाणा के महामहिम राज्यपाल श्री जगन्नाथ पहाड़िया जी के कर कमलों से मिला राज्य शिक्षक पुरस्कार विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनके बाकी सभी पुरस्कार एक तरह से इस पुरस्कार की आधारभूमि बने हैं। अतः प्रस्तुत लेख के लेखक ने इसी एक पुरस्कार का उल्लेख करना उचित समझा है।
बकौल जलधीरसिंह कलकल कहें तो हम कह सकते हैं कि अपने तमाम प्रयासों के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में यह अपने पिताश्री श्री कमलसिंह व माता श्रीमती मायाकौर द्वारा दिए गए संस्कारों को कभी नहीं भुला सकते। अलावा इसके इन्हें अपने साथी अध्यापकों व सम्पर्क के दूसरे शिक्षाविदों से भी भरपूर सहयोग मिला है। इनकी प्रेरणा व मार्गदर्शन से अन्य शिक्षकों ने भी राज्य शिक्षक पुरस्कार प्राप्त किए हैं। अतः कहा जा सकता है कि जलधीरसिंह कलकल को विरासत में शिक्षा व समाजसेवा के जो संस्कार मिले हैं, वही आगे चलकर उनके व्यक्तित्व निर्माण में विशेष सहायक सिद्ध हुए हैं तथा उन्ही की बदौलत उन्हें समाज में तो सम्मान मिला ही है साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी ‘राज्य शिक्षक सम्मान’ से नवाज़ा गया है।

-आनन्द प्रकाश ‘आर्टिस्ट’
मकान नं. 818, वार्ड नं. 9,
सर्वेश सदन आनन्द मार्ग,
आनन्द नगर, कोंट रोड़,
भिवानी-127021(हरियाणा)
मो. नं.-09416690206

Language: Hindi
Tag: लेख
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