विरह गीत
दिगपाल छंद ???सादर समीक्षार्थ
विरह गीत
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है गीत ये मिलन का, गाओ मुझे सुनाओ।
चितचोर दिल लगाकर, यूँ दूर अब न जाओ।।
तेरे लिए सजी हूँ, मनमीत मै बता दूँ।
जो भूल तुम गये हो, चल याद मैं करा दूँ।।
दृग से मुझे गिराकर, यूँ दूर तुम न जाओ।
है गीत ये मिलन का, गाओ मुझे सुनाओ।।
चक्षु में तुम बसे हो, कैसे तुझे दिखाऊँ।
जो रूठ तुम गये हो, आओ तुझे मनाऊँ।।
दिलदार आज आकर, अब अंग तो लगाओ।
है गीत ये मिलन का, गाओ मुझे सुनाओ।।
है रास्ते कठिन अब बिन तेरे जिन्दगानी।
जो आये न सजन तो, बनकर रहूँ कहानी।।
हे प्रीत तुम हृदय में, आकर विराज जाओ।
है गीत ये मिलन का, गाओ मुझे सुनाओ।।
मकरंद भर गया है, हर अंग में हमारे।
भ्रमर बने तुम आओ, मकरंद के सहारे।।
मैं रागिनी बनी हूँँ, तुम गीत आज गाओ।
है गीत ये मिलन का, गाओ मुझे सुनाओ।।
जबसे गये सजन तुम, न नींद है न चैना।
बिताऊँ बोल कैसे, न बीतती है रैना।।
न बन रही मै जोगन,आकर लगन लगाओ।
है गीत ये मिलन का, गाओ मुझे सुनाओ।।
———————-✍️✍️ स्वरचित, स्वप्रमाणित
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”