*विरह की शमा में*
तुम्हारे विरह की श़मा में जल रहा हूँ,
तुम्हारी यादों के संग-संग चल रहा हूँ !
ख़लने लगा हूँ अब तो दोस्तों को अपने,
वे सोचते हैं कि मैं बेढंग चल रहा हूँ !
बताऊँ तो कैसे तुम्हारी यादों के पुलिंदे,
सहूँ भी तो कब तक असह ताने-बाने!
तुम आओगी या फिर बुलाओगी मुझको,
बस इसी इक इंतज़ार में पल रहा हूँ !
तन की खबर है ना मन का पता है!
न मालूम मुझसे हुई क्या खता है !
हुई दूर जब से दिलो जान जल रहा हूँ !
बारिशों में पतंगा मेहमान हूँ ‘मयंक’,
सावन की फुहारों में बेजुबान जल रहा हूँ !
मेरे दूर जाने पर कभी अश्क न बहाना,
बिन सोचे-समझे कहीं इश्क न लड़ाना।
समन्दर से भी गहरी है मयंक मोहब्बत,
थाह की चाहत में व्यर्थ वक्त न गँवाना।
रचयिता : के.आर.परमाल ‘मयंक’