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13 May 2017 · 1 min read

विदाई

दो और तीन मिलाकर थे तुम कुल उतने !
मेरे शिक्षक जीवन के प्रथम शिष्य थे तुम उतने !
इतिहास बना गए यादों का
कैसे भूलूँ तुम्हे !
विदा माँग रहे हो ? किस हृदय से विदाकरूँ तुम्हें !
.छोड़ चले तुम कक्षा काआँगन यादों की अंगड़ाई मुख पर मुस्कान लिए !
मन करता है रोक लूँ तुम्हें पर रोक नहीं सकता !
तुम हो आजाद गगन की पतंग खींच नहीं सकता !
चल पड़े तुम लेकर अपने कर्मों को उड़ चले दृगन में आशा नहीं वापस आवन की !
विदा माँग रहो हो? विदा के बहाने कुछ कह देता हूँ ;
छात्र-छात्राएँ नहीं तुम मानवीय करूणा के अवतार हो !
.हम भिन्न वर्ण भिन्न जाति भिन्न पंथ भिन्न रूप थे !
भिन्न धर्म -भाव ,पर प्राणों से हम एक थे !
विपथ होकर मुड़ना तुम्हें नहीं
चलने में तो सब चलते हैं
तुम्हे चलने का मार्ग बनाना हैं.
तोड़ दो तन की अकुलता,
तोड़ दो मन संकीर्णता
.बिन्दु बनकर बैठना नहीं
सिन्धु बनकर उठना है.
मेरे आशीष में यह नहीं कि तुम स्वर्ग में जाओ !
मैं कहता कि तुम भूतल को ही स्वर्ग बनाओ !
खो दिया अगर जीवन का स्वर्णिम सुअवसर !
समझो खो दिया जीवन का सकल सुयुग !
.इसी आशा के साथ विदा तुम्हें करता हूँ !
तुम्हारे शुभ कर्मो का तर्पण सदा करता रहूँ. !!!

—————×————-×——-

Language: Hindi
374 Views
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