विज्ञान आज अभिशाप बन गया
याद आ रही उन दिनो की
समय चल रहा धीरे चाल
गति प्रगति की मंद रही थी
बिन विज्ञान पिछडे हालात
बैलो की जोडी जब संग थी
खुशी थी घर घर मन उमंग थी
नही प्रदूषण कृतिम ढंग थी
हरे भरे खेतो मे तरंग थी
प्रकृति सारी सुन्दर सुरंग थी
अपने हाथ का रहा सहारा
दुख को जीत चुका सारा
सुखी रहा परिवार हमारा
रोग दोष था हमसे हारा
खेती केवल आय सहारा
जय किसान का था जब नारा
पर अब समय पलट चुका है
कृत्रिमता घर घर मे घुसा है
मानव भी अब बने दिखाये
सच न जाने धोखा खाये
विज्ञान आज अभिशाप बन गयी
दुख का कारण ताप बन गयी
विन्ध्यप्रकाश मिश्र